शिव का अर्थ है, कल्याणकारी!
सुप्पी: प्रखंड क्षेत्र में के छौरहिया गांव में शिव महिमा वाचन कर रहे वृंदावन(मथुरा) से पधारे ज्योतिष महर्षि भागवत मयंक युवा कथाकार आचार्य पं प्रभाकर शुक्ल उर्फ गुरूजी ने कहा की त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता है। संहार ही पुन: सृजन का मूल है। शिव रोग-दोष और दुष्प्रभावियों के शमनकर्ता हैं।उनको आशुतोष भी कहा जाता है, क्योंकि वो भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। मंगलवार की रात महाशिवरात्रि पर्व के पावन अवसर पर गुरूजी ने कथा सुनने आए भक्तों से कहा कि शिव का अर्थ है, कल्याणकारी! जिनके अनुसरण और अनुगमन से मनुष्य के कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो, वही शिव हैं। शिव को प्रसन्न करने के लिए बड़े-बड़े लौकिक अनुष्ठानों की जरूरत नहीं पड़ती। विशुद्ध अंत:करण और किंचित जलधार मात्र से ही वो भक्तों के अभीष्ट की सिद्धि कर देते हैं। भगवान शिव विद्या विवेक विचार के देवता हैं।मनुष्य ही नहीं देवताओं ने भी जब जब देवों के देव महादेव का विस्मरण किया है, तब तब उन पर संकट आया है। समुद्र मंथन के पौराणिक प्रसंग में समुद्रमंथन से हलाहल नामक भयंकर विष निकला और तीनों लोकों में हाहाकार मच गया । उस समय में विष के भय से पीड़ित सृष्टि की रक्षा भगवान शिव ने ही की थी। गुरुजी ने कहा कि आज भी मनुष्य के अज्ञान के कारण जो जीवन के अस्त्तित्व पर संकट खड़ा है उसका निदान शिव कृपा से ही संभव है। प्रतीकात्मक रूप से समुद्रमंथन का अभिप्राय मनोमंथन से है। मानवता अपने अस्तित्व के लिए जब संघर्षरत हो ऐसे समय मे शिवत्व का अनुगमन, अनुसरण मनुष्यत्व की रक्षा का एकमात्र विकल्प है। आयोजन में कृष्ण वल्लभ सिंह, शैलेंद्र सिंह, सुधा सिंह, मुकेश कुमार सिंह, सौरभ, गौतम आदि का सराहनीय योगदान रहा।
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